888 bytes added,
08:02, 23 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा गुप्ता
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
रैन बसेरा
चल, उठाले डेरा
हुआ सवेरा
क्या भला यहाँ मेरा
जो कुछ मिला
सब यहीं निबेरा
दु:खों से घिरा
खुद लाचारों -द्वार
था चकफेरा
मेरी मूरखता थी
करुणाघन !
कभी तुझे न टेरा
दो बूँद जल !
मुमूर्षु चातक ने
तुझे है हेरा
एक आस लगी है
तारनहार !
कर दो बेड़ा पार
दीन वत्सल !
करो जुगत ऐसी
फिर से न हो फेरा ।
-0-
</poem>
'''''मोटा पाठ'''''