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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
झंकृत है आज मेरे मन का हर तार, मुझे प्यार हो गया
उसके बिन जीवन लगता है निस्सार, मुझे प्यार हो गया

निष्ठुरता कोमलता में बदली मन की, मृदुल भाव खिल उठे
रसमय लगता सबको मेरा व्यवहार, मुझे प्यार हो गया

मेरे उर पर धर कर कर्ण सुनो गूंज रही प्रेम-गीतिका
मन का कवि लिखता है प्रतिपल अभिसार, मुझे प्यार हो गया

वो सपनों के माध्यम से मुझसे मिलने चली आती और मैं
करता शब्द सुमनों से उसका सत्कार, मुझे प्यार हो गया

जगती के प्रति मेरे दुखमय चिंतन की प्रगति रूद्ध हो गयी
सुखमय लगता अब तो सारा संसार, मुझे प्यार हो गया
<poem>
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