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जी में आया है, मुझे आज वो, कर जाने दे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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10:41, 5 अक्टूबर 2011
जान भी, जिस्म से, ऐ जाने जिगर, जाने दे
रूठे दिलबर
दो
को
यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे
</poem>
SATISH SHUKLA
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