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सदस्य:Umakant

7 bytes added, 03:44, 14 अक्टूबर 2011
इस प्रेम की अविरल धारा में
इस प्रेम की अविरल धारा में , सांसों का क्रम बढ जाता है
 
जब बात जुबा पर आती है , दिल में सैलाब सा आता है
 
जब कहने को कुछ करता मन, होंठों पर के शब्द खो जाते है
 
इस बंद जुबा के अनकहे लफ्ज , बिन सुने ही समझे जाते है
 
शब्दों का अथाह सागर हृदय में है ,बोलने को भी मन करता है
 
पर ये जुबा बंद हो जाती है , जब प्रेम अधिक हो जाता है
 
जब प्रेम अधिक हो जाता है , सांसो में कोई घुल जाता है
 
तब हृदय का निश्छल प्रेम , बरबस ही आखों से बह जाता है
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