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सम्पूर्णता / आग्नेय

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{{KKRachna
|रचनाकार=आग्नेय
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर/ आग्नेय; लौटता हूँ उस तक / आग्नेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
वह आकाश की ओर
 
देखती रही
 
जबकि मैं उसके निकट
 
छाया की तरह लिपटा था,
 
उसका हाथ
 
दूसरी स्त्री के कन्धे पर था,
 
जबकि मैं उसके चारों ओर
 
हवा की तरह ठहरा था,
 
भरी-पूरी स्त्री का भरा-पूरा प्यार
 
अन्तिम इच्छा की तरह जी लेने के लिए
 
मैं उसे हरदम
 
पल्लवित और फलवती
 
पृथ्वी की सम्पूर्णता की तरह
 
रचता रहूंगा
</poem>
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