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18:31, 17 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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<Poem>
पीली धूप में नहाया हुआ एक पल
जैसे बारिश के बाद घास की कोंपल
जैसे खिलने को राजी कोई कली
जैसे पेड़ के बाजू में चाँद का टुकड़ा
कसमसाता रहता है सारी रात
और उसे देखकर तुम्हारा मचलना
तुम्हारी उंगलियों का मुझे इशारा करना
मुझमें अजीब-सा अनुभव भर देता है
तुम्हारी गीली-गीली स्याह-सी आँखें
छीनने लगती है मेरे होशो-हवास
गुम होने लगता हूँ तुम्हारी गंध में
अचानक अपने में जब लौटकर आता हूँ
पाता हूँ खुद को फूल से भरी वादी में
सामने पानी में पाँव रखता हुआ सूरज
जैसे तुम्हारी आँख का दूसरा किनारा
भरने लगता है अंधेरा मेरे बदन में
साँस की रफ़्तार ज़रा-सी तेज़ हो जाती है
सीने पर कोई पत्थर महसूस होता है
देख लेता हूँ कंधे पर एक ‘स्पर्श’
मुस्कुराती हुई सामने आती हो तुम
रेड टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहने हुए
इस पोशाक में भी तुम ‘हॉट’ लगती हो
<Poem>