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उद्योग / जय गोस्वामी
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08:52, 29 अक्टूबर 2011
मेरी हड्डी-पसली तोड़ेंगे, भइये?
आज से यही है
गणतंत्र
लोकतंत्र
!आज से यही है
गणतंत्र
लोकतंत्र
!
'''बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता'''
</poem>
अनिल जनविजय
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