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हिचकी / विमलेश त्रिपाठी
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16:56, 4 नवम्बर 2011
आज रात के बारह बजे कौन हो सकता है
जो याद करे इतना कि यह
रूकने
रुकने
का नाम नहीं लेती
मन के पंख फड़फड़ाते हैं उड़ते सरपट
अनिल जनविजय
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