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काज़िम जरवली

1,583 bytes removed, 12:09, 8 नवम्बर 2011
प्रमुख कृतियाँ : किताब-ए-सन्ग (ग़ज़ल संग्रह) , हुसैनियत (सलाम व नौहे), कूचे और कंदीले, इरम ज़ेरे क़लम<br />
प्रमुख सम्मान / पुरूस्कार : यू पी उर्दू अकादमी अवार्ड (1994) किताब-ए-सन्ग के लिए, “शायर-ए-फ़िक्र” द्वारा -इंटरनेशनल पीस फाउंडेशन ® नई दिल्ली , “फरोगे अज़ा व विला” द्वारा -इदारा मोह्सिने इस्लाम- मुंबई,
 
|रचनाकार=”काज़िम” जरवली
|संग्रह=महुए / ”काज़िम” जरवली
<poem>कभी हमने भी गेहूं की बाली मे महुए पिरोये थे !!!
 
मेरे गाँव की यादें नशीली !
जूही,
चमेली !
 
वो खट्टे, वो मीठे मेरे दिन,
वो अमिया, वो बेरी !
 
कभी गाँव के कोल्हु पर ताज़े गुड के लिये रोये थे !!
कभी हमने भी........................... महुए पिरोये थे !!!
 
कभी भैंस की पीठ पर,
दूर तालाब पर !
 
धान के हरे खेतो के बीच खोये थे !!
कभी हमने भी.............महुए पिरोये थे !!!
 
कच्ची दहरी के पीछे,
खाई के नीचे !
 
ठंडी रातो मे हम भी पयाल पर सोये थे !!
कभी हमने भी............... महुए पिरोये थे !!!
 
एक दिन हम जो जागे,
गाँव से अपने भागे !
 
सारे सपने ना जाने हमने कहाँ डुबोये थे !!
कभी हमने भी गेहूं की बाली मे महुए पिरोये थे !!! --”काज़िम” जरवली
</poem>