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14:08, 8 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>फ़ज़ाए शहर की नब्ज़े खिराम बैठ गयी,
फ़सीले शब पे दीये ले के शाम बैठ गयी ।
वो धूल जिस को हटाया था अपने चेहरे से,
वो आइनों पा पये इन्तेक़ाम बैठ गयी ।
गुज़रने वाला है किया रौशनी का शहजादा,
जो बाल खोल के रस्ते मे शाम बैठ गयी ।
मै किस नशेब मे तेरा लहू तलाश करु,
तमाम दश्त पा ख़ाके खयाम बैठ गयी ।
बहुत तवील सफ़र का था अज़्म ऐ ”काज़िम”,
हयात चल के मगर चन्द गाम बैठ गयी ।। --”काज़िम” जरवली
</poem>