Changes

खुशबुए गुल / ”काज़िम” जरवली

1 byte removed, 14:25, 8 नवम्बर 2011
<poem>जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये ,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नही पहुंचा ।
 
जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया ,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।।
</poem>