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14:26, 8 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>हवा में ज़हर घुला है मगर मै जिंदा हूँ ,
हर एक सांस सज़ा है मगर मै जिंदा हूँ ।
किसी को ढूंडती रहती हैं पुतलियाँ मेरी,
बदन से रूह जुदा है मगर मै जिंदा हूँ ।
मेरे ही खून से रंगीं है दामने क़ातिल ,
मेरा ही क़त्ल हुआ है मगर मै जिंदा हूँ ।।
</poem>