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06:54, 9 नवम्बर 2011 एक बार फिर वह
सोच रही है
अपनी जिंदगी के बारे में
झुग्गी में
बर्तन मांजने से
सुबह की शुरूआत करती हुई
और
टूटी खाट की
लटकती रस्स्यिों के
झूले में
रात को करवट बदलने के बीीच
जीवित होने का
अहसास दिलाने के लिये
क्या कुछ है शेष