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देखना भी चाहूँ / वेणु गोपाल
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{{KKRachna
|रचनाकार=
राजा खुगशाल
वेणु गोपाल
|संग्रह=
संवाद के सिलसिले में
}}
न हो तो न सही
कोई तो
'
पन' हो
जो भी जो है
वही
÷
'
वह' नहीं है
बस , देखने को यही है
और कुछ नहीं है
ᄉ
हां, यह सही है
वहीं से
देख पाऊंगा
ᄉ
दुख को दुखी
अनिल जनविजय
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