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हर ख़ुशी ग़म में बदलती है कहो कैसे हँसूं /वीरेन्द्र खरे अकेला
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10:40, 12 नवम्बर 2011
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
ऐ ‘अकेला’ मंज़िलों को दूर जाता देखकर
ज़िन्दगानी हाथ मलती है कहो कैसे हँसूं
ऐ ‘अकेला’ मंज़िलों को दूर जाता देखकर
<poem>
Tanvir Qazee
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