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03:12, 14 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
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<poem>
'साले तेरी .... की.....'
अघोरी ने शब्द निकाले
सबकी ज़ुबां पर पड़ गए ताले
वीभत्स चेहरा , तन पर राख
मदिरा में डूबी, आग उगलती आँख
गले में मानव खोपड़ी
छिन्न -भिन्न केश काले
कौन सा जीवन व्रत है ये
जहाँ केवल भय है
इनका सम्पूर्ण जीवन
दिखता घृणामय है
पर इससे भी ज़्यादा सत्य छिपा है
इनपर महादेव की कृपा है
ये जानते हैं आदि और अंत
जीवन पर्यंत
हाड मॉस केवल छलावा है
एक दिन भस्म हो जायेगा
ये सब भुलावा है
ये जब हँसते है तो भी वही है
रोते है तो भी वही है
ये विलीन हैं उस चैतन्य में
ये समाये हैं उस मूर्धन्य में
जो ज़मीन, आकाश, पाताल शेष है
जो शिव है सत्य है विशेष है
</poem>