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<Poem>
उस हुस्ने मुजस्सिम से पहचान हो न जाये
ये जिंदगी किसी पर क़ुर्बान हो न जाये

लिल्लाह न उठायें चेहरे से आप पर्दा
इस दिल में कहीं पैदा अरमान हो न जाये

पाँव के आबलों को मरहम न दीजियेगा
मंज़िल कि लज्ज़तों को नुकसान हो न जाये

मै आपकी हकीक़त तहरीर कर रहा हूँ
मेरी तबाहियों का ऐलान हो न जाये

ऐ बुलबुलों ख़ुदारा, नफरत से बाज़ आओ
ये गुलसितां तुम्हारा वीरान हो न जाये

अल्लाह रे 'मनु' अब कुर्बत किसी हसीं से
रुसवाइयों का तेरी सामान हो न जाये</poem>
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