1,268 bytes added,
21:34, 18 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
फरेब देखे हैं रंगे-वफ़ा नहीं देखा
तुम्हारी बज़्म में वल्लाह क्या नहीं देखा
हरेक गाम पे नफरत ही पायी है हमने
यहाँ पे कौन था जिसको खफा नहीं देखा
ग़म-ए-हयात, ग़म-ए-दिल, या तेरे हिज्र का ग़म
किसी भी दर्द से खुद को जुदा नहीं देखा
शहर में थे हरेक सम्त यूँ तो दैरो-हरम
क़सम खुदा की कहीं भी खुदा नहीं देखा
अमीरे-शहर चरागाँ की बात करता है
किसी ग़रीब का बुझता दिया नहीं देखा
तलाश-ए-हक में ज़माने की ठोकरें खाके
तुम्ही कहो के 'मनु' तुमने क्या नहीं देखा</poem>