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<Poem>
हम सबकी निगाहों से बचाए हुए तो हैं
आँखों में आंसुओं को छुपाये हुए तो हैं

इक-दूसरे के दिल में समाये हुए तो हैं
सब आसमाँ को सर पे उठाये हुए तो हैं

माना की हमसे दूर हो तुम, तुमसे दूर हम
फिर भी चिराग़-ए-इश्क जलाये हुए तो हैं

जा तो रहे हो राज़ मेरे खोलना नहीं
कुछ ऐतबार पे ही बताये हुए तो हैं

पत्थर के इस शहर में रखो एहतियात से
शीशे के महल तुमने बनाये हुए तो हैं

अब कह भी दीजियेगा 'मनु' उनसे दिल का हाल
वो अंजुमन में आपकी आये हुए तो हैं</poem>
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