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21:46, 18 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<Poem>
देखके तुमको ऐसा लगता है
मै तुम्हे जानता हूँ बरसों से
जब भी होता हूँ मै उदास कभी
दिल तुम्हे अपने पास पाटा है
वो तेरा सिर्फ तेरा है शायद
मेरे लब पे जो नाम आता है
जब भी आती हो तुम तसवुर में
मेरी दुनिया महकने लगती है
झूमने लगता है दीवाना दिल
तेरी पायल छनकने लगती है
हाँ ! मगर ये सवाल उठता है
तुमने क्यूँकर मुझे पहचाना नहीं
मै हूँ मुद्दत से तुम्हारा अपना
इस हक़ीक़त को तुमने माना नहीं
ख्वाब हो जाएँ हकीकत मेरे
काश! तुम अपना समझ लो मुझको
मेरे ख्वाबों में तुम ही बसती हो
सिर्फ अहसास दिला दो मुझको
आओ हम दोनों एक हो जाएँ
तुम रहो यूँ ना अजनबी बनकर
मेरे बेजान जिस्म के अन्दर
तुम समा जाओ ज़िन्दगी बनकर</poem>