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21:48, 18 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनु भारद्वाज
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<Poem>
आज ये ऐलान करता हूँ भरे बाज़ार में
बिक चुकी साडी वफायें मज़हबी व्यापार में
मुफलिसों-बेक़स को मेरे यार अपनाएगा जो
बाखुदा दीवार में चुनवा दिया जायेगा वो
आप भी मुफलिस हैं तो आ जाइये- आ जाइये
भूक है तो पत्थरों को तोड़ कर खा जाइये
दुल्हनें जलकर बनी हैं सुर्खियाँ अख़बार में
शादियों को लोग गिनने लग गए व्यापार में
तजकर है हर तरफ एक घर जलाया जायेगा
और तमाशा लुटती अस्मत का दिखाया जायेगा
सज्दागाहें लुट गईं और मयक़दे चलते रहे
लगज़िशों कि भीड़ में यूँ घर के घर जलते रहे
तुम अगर चाहो गुलिस्ताँ फिर स्वर सकता है आज
वर्ना ये गुलशन का गुलशन भी बिखर सकता है आज
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई एक हों खाएँ क़सम
आन पे हिन्दोस्ताँ कि जान दे डालेंगे हम</poem>