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तीन दोस्त / दुष्यंत कुमार

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सपने अनगिन निर्माण लिए ही पलते हैं।
हम हर उस जगह जहाँ पर मानव रोता हैअत्याचारों का नंगा नर्तन होता हैआस्तीनों को ऊपर कर निज मुट्ठी तानेबेधड़क चले जाते हैं लड़ने मर जानेहम जो दरार पड़ चुकी साँस से सीते हैंहम मानवता के लिए जिंदगी जीते हैं।X X X Xये बाग़ बुज़ुर्गों ने आँसू औ’ श्रम देकरपाले से रक्षा कर पाला है ग़म देकरहर साल कोई इसकी भी फ़सलें ले खरीदकोई लकड़ी, कोई पत्तों का हो मुरीदकिस तरह गवारा हो सकता है यह हमकोये फ़सल नहीं बिक सकती है निश्चय समझो।...हम देख रहे हैं चिड़ियों की लोलुप पाँखेंइस ओर लगीं बच्चों की वे अनगिन आँखेंजिनको रस अब तक मिला नहीं है एक बारजिनका बस अब तक चला नहीं है एक बारहम उनको कभी निराश नहीं होने देंगेजो होता आया अब न कभी होने देंगे।X X X Xओ नई चेतना की प्रतिमाओं, धीर धरोदिन दूर नहीं है वह कि लक्ष्य तक पहुँचेंगेस्वर भू से लेकर आसमान तक गूँजेगासूखी गलियों में रस के सोते फूटेंगे। हम अपने लाल रक्त को पिघला रहे औरयह लाली धीरे धीरे बढ़ती जाएगीमानव की मूर्ति अभी निर्मित जो कालिख सेइस लाली की परतों में मढ़ती जाएगीयह मौनशीघ्र ही टूटेगाजो उबल उबल सा पड़ता है मन के भीतरवह फूटेगा,आता ही निशि के बादसुबह का गायक है,तुम अपनी सब सुंदर अनुभूति सँजो रक्खोवह बीज उगेगा हीजो उगने लायक़ है।X X X X
हम तीन बीज
उगने के लिए पड़े हैं हर चौराहे पर
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