|रचनाकार=क़तील शिफ़ाई
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{{KKCatNazm}}<poem>
कल रात इक रईस की बाँहों में झूमकर,
<br> लौटी तो घर किसान की बेटी ब-सद मलाल1,<br>ग़ैज़ो-ग़जब से2 बाप का खूँ खौलने लगा,<br>दरपेश3 आज भी था मगर पेट का सवाल।<br><br> कल रात इक सड़क पे कोई नर्म-नर्म शै,<br>बेताब मेरे पाँव की ठोकर से हो गई,<br>मैं जा रहा था अपने खयालात में मगन,<br>हल्की-सी एक चीख़ फ़ज़ाओं में4 खो गई।<br><br>
कल रात इक किसान के घर से धुआँ उठासड़क पे कोई नर्म-नर्म शै,<br>बस्ती में ग़लग़ला5-सा हुआ-आग लग बेताब मेरे पाँव की ठोकर से हो गई,<br>इस रंज से किसान का दिल पाश-पाश मैं जा रहा थाअपने खयालात में मगन,<br>रक्साँ6 थी चौधरी के लबों पर मगर हँसी।<br><br>हल्की-सी एक चीख़ फ़ज़ाओं में4 खो गई।
कल रात इक किसान के घर से धुआँ उठा,
बस्ती में ग़लग़ला5-सा हुआ-आग लग गई,
इस रंज से किसान का दिल पाश-पाश था,
रक्साँ6 थी चौधरी के लबों पर मगर हँसी।
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1.अत्यन्त दुख के साथ 2.क्रोधवश 3.सम्मुख 4.वातावरण 5.शोर 6.नृत्यशील