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00:23, 7 दिसम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
मेरे आँगन
उतरी सोनपरी
लिये हाथ में
वह कनकछरी
अर्धमुद्रित
उसकी हैं पलकें
अधरों पर
मधुघट छलके
कोमल पग
हैं जादू-भरे डग
मुदित मन
हो उठा सारा जग
नत काँधों पे
बिखरी हैं अलकें
वो आई तो
आँगन भी चहका
खुशबू फैली
हर कोना महका
देखे दुनिया
बाजी थी पैंजनियाँ
ठुमक चली
ज्यों नदिया में तरी
सबकी सोनपरी ।
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</poem>