{{Welcome|Paurush|}}
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उस मधुघट से होठ लगाने दो तुम मुझको भी हे कवी दानी <br />
जिसमे डूब निकाली तुमने पद्मावत की रतन कहानी <br />
जिसकी प्रतिध्वनियाँ आती है हर नर नारी के चित उर से <br />
जिससे उजियाला होता आया है हर प्रेमी के जग में<br />
जायस के हे एक नयन कवी सगुन बनो तुम मेरे मन में <br />
</poem><br />
- श्री हरिवंश राय बच्चन <br />
सारांश: मालिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत के विषय में