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क़ब्रगाह / संध्या गुप्ता
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19:30, 11 दिसम्बर 2011
कितने लोग दफ़न हुए इस ज़मीन में
कितने घर और कितने मुल्क...
तबसे ...जबसे यह ज़मीन बनी है!
...उनकी क़ब्रगाह पर ही तो बसी हुई हैं
उसी क़ब्रगाह पर खड़े हैं हम
एक और क़ब्रगाह बसाए हुए!!
</Poem>
अनिल जनविजय
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