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वह भी आदमी है / रमेश रंजक

294 bytes added, 14:42, 14 दिसम्बर 2011
इक ग़रीबी के सिवा इस आदमी में क्या कमी है ?
 
भेद यह बोया गया है
महल की चालाकियों से
और फैलाया गया, कुछ
पालतू बैसाखियों से
 
इसलिए ईमान की असहाय आँखों में नमी है
</poem>
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