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यादें बीमार / रमेश रंजक
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06:10, 19 दिसम्बर 2011
<poem>
फिर लम्बे लान में उतर आई
छोटे पाँवों वाली रात ।
जैसे-तैसे काटा दिन
नीले वातास पर उभर आए
अनसुलझे कई सवालात ।
</poem>
अनिल जनविजय
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