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साथ बहे ख़ुशबू के / रमेश रंजक
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06:36, 19 दिसम्बर 2011
पनडुब्बी हो जाना
ख़ुद को फैला लेना
लहरों के झूलों पर
खिंच कर लगा लेना
गीतों का सिरहाना
रातों भर साथ बहे ख़ुशबू के
ऊबे बिन
डूबे दिन
जाने क्यों सुधियाए दिन डूबे ।
</poem>
अनिल जनविजय
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