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[[Category:पद]]
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ओमनेक बार बोलओमक्षर अखिलाधार, प्रेम के प्रयोगी।है यही अनादि नादजिसने जान लिया। एक, अखण्ड, अकाय, असंगी, अद्वितीय, निर्विकल्प निर्विवादअविकार,भूलते न पूज्यपादव्यापक, वीतराग योगी।ब्रह्म, विशुद्ध विधाता, विश्व, विश्वभरतार-वेद को प्रमाण मानपहचान लिया। भूतनाथ, अर्थ-योजना बखानभुवनेश,गा रहे गुणी सुजानस्वयंभू, साधु स्वर्गभोगी।ध्यान में धरें विरक्तअभय, भाव से भजें सुभक्तभावभण्डार,त्यागते अघी अशक्तनित्य, निरंजन, न्यायनियन्ता, निर्गुण, पोच पापनिगमागार-रोगी।शंकरादि नित्य नाममनु को मान लिया। करुणाकन्द, जो जपे विसार कामकृपालु, अकर्त्ता, कर्महीन करतार,तो बने विवेक धामपरमानन्द, मुक्ति क्यों न होगी।पयोधि, प्रतापी, पूरण, परमोदार-से सुखदान लिया। सत्य सनातन श्रीशंकर को समझा सबका सार,अपना जीवन-बेड़ा उसने भवसागर से पार-करना ठान लिया।
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