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विश्वसुंदरी / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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10:35, 23 दिसम्बर 2011
:खुलते हैं रवि-शशि के द्वार,
इन चरणों के ताल-ताल पर त्रिभुवन में होता है कंपन,
अपनी ही तानों की गति पर जब तुम करने लगतीं
नर्तन,
नर्तन।
</poem>
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