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सौंदर्योपासना / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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10:51, 23 दिसम्बर 2011
नयनों में, उर में रखा उसे मैंने तो ‘सुंदर’ मान, प्रिये।
:उस रात, तुम्हारे वंशी-रव ने नभ में जो खींची रेखा,
:
उसके छवि-अंकन में ‘अनंत’ को सर्व-प्रथम मैंने देखा।
</poem>
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