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आशा का दीपक / रामधारी सिंह "दिनकर"
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11:39, 24 दिसम्बर 2011
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,<br>
अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।<br>
और अधिक ले जाँच, देवता
इतन
इतना
क्रूर नहीं है।<br>
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।<br><br>
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