--[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ०२:३३, २३ फरवरी २००८ (UTC)
== 26 फ़रवरी को जो आपने अज्ञेय की कविताएँ बदली थीं। थी। ==आपने साँचे डाल दिए, इसके अलावा भी एक काम है। '''सवेरे उठा तो धूप खिली थी / अज्ञेय''' ये कविता कितनी नावों में कितनी बार संग्रह में '''उधार / अज्ञेय''' के नाम से मौजूद है, और मेरे हिसाब से यही इसका सही शीर्षक है, बाक़ी आप देख लीजिए। है। इसके अलावा आपने सूची में अज्ञेय की इन कविताओं के शीर्षकों में (या शायद आप हमेशा ऐसा करती हैं) चंद्रबिंदु के इस्तेमाल में ग़लती की है, जो कि दरअसल आपकी ग़लती न होकर छापने वालों की है। तफ़सील के लिए आप [[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ]] और [[कविता कोश में वर्तनी के मानक]] वाले पन्ने पर जाइए। वर्तनी मानक वाले पन्ने के अनुस्वार और अनुनासिक के सैक्शन में मैंने इससे इतर एक नियम पर एक आपत्ति की थी, उसे शायद रिवर्ट कर दिया गया है, मैं उस नियम को वापस डालने के लिए ललित जी से बात करूँगा। ख़ैर, अफ़सोस की बात है कि ये चंद्रबिंदु वाली ग़लती इतनी आम हो गई है कि इसे सही समझा जाने लगा है।आप इन तीन कविताओं को सही नामों पर मूव करके मूल पन्नों को मिटा दीजिए: '''आँगन के पार द्वार / अज्ञेय''', '''चाँदनी जी लो / अज्ञेय''',''' मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय''' । शीर्षक में हिज्जों की ग़लती हो तो दूसरे ऐडिटरों को मुश्किल हो जाती, कविता के अंदर की ग़लती तो आसानी से ठीक की जा सकती है। और '''फ़ोकिस में औदिपौस / अज्ञेय''' इस में मैंने गड़बड़ की थी, इसे भी मिटा दीजिए, '''फ़ोकिस में ''ओदिपौस'' / अज्ञेय''' सही वाला पन्ना है जिसे ''औदिपौस'' को मूव करके बनाया था।
[[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ०९:१२, ९ अप्रैल २००८ (UTC)