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अजगरी संत्रास / रमेश रंजक

6 bytes added, 21:37, 7 जनवरी 2012
शब्दहीन वेदना को
बींधता सायास
दुहरा शोर
खींचता है अजगरी संत्रास भूखा
मुट्ठियों में बंद खालीपन अचेतन
धमनियों में तैर जाता बाँस का बन ।
टीसते हैं खिड़कियों के
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