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डरपत मन मोरा / सुधीर सक्सेना
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07:21, 8 फ़रवरी 2012
राम जी !
आकाश में जब भी गरजते हैं मेघ,
कड़कती हैं
बिजलियां
बिजलियाँ
मेरा भी मन डरता है
ठीक तुम्हारी तरह
प्रिया से दूर
हूं
हूँ
मैंइंद्रप्रस्थ में एकाकी
.
</Poem>
अनिल जनविजय
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