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राष्ट्र देवता / सोम ठाकुर

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<poem>
तुझ पर निछावर फूल
केसरिया शीश फूल
ओ देवता! देश के देवता!!
तुझ पर निछावर फूल<br>तेरी हथेली उठी,केसरिया शीश फूल<br>किरणें उगने लगीं,ऋतु हो गई चंपईदिन की साँसें जगीं,तू ने दिया रात कोगुलाबी सुबह का पता।ओ देवता! देश के देवता!!<br><br>
तेरी हथेली उठी,<br>फलने लगा फौलादकिरणें उगने लगींमेहनत की बाँह में,<br>ऋतु हो गई चंपई<br>उठते हुए तूफ़ानदिन की साँसें जगींतेरे द्वारे थमें,<br>तू ने दिया रात को<br>संघर्ष की गोद मेंगुलाबी सुबह का पता।<br>सदा से सृजन खेलता।ओ देवता! देश के देवता!!<br><br>
फलने लगा फौलाद<br>मेहनत की बाँह में,<br>उठते हुए तूफ़ान<br>तेरे द्वारे थमें,<br>संघर्ष की गोद में<br>सदा से सृजन खेलता।<br>ओ देवता! देश के देवता!!<br><br> काल का वसंती मंत्र<br>पढ़ती हैं पीढ़ियाँ,<br>सपने सयाने हुए,<br>चढ़ते हैं सीढ़ियाँ<br>संसार बढ़ते हुए<br>
तेरे चरण देखता।
</poem>
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