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भावार्थ :--माता यशोदाजी मदनगोपालको यशोदा जी मदनगोपाल को सुला रही हैं, किंतु उनके शयनकी शयन की रीति देखकर (भगवान के सोनेपर सोने पर तो प्रलय हो जाता है, यह समझकर तीनों लोक भयसे भय से काँप रहे हैं, शंकर और ब्रह्माजी भी भ्रममें भ्रम में पड़ गये हैं, (कि प्रभु क्या सचमुच सो रहे हैं)? काले, कुछ लाल तथा श्वेत नेत्रोंमें नेत्रों में आलस्य आ गया है, उनकी दोनों पलकें बंद हो जाती हैं,(ऐसी शोभा है ) मानो सूर्यास्त हो जानेपर जाने पर दो कमल संकुचित (बंद) हो रहे हैं, जिससे उनमें बैठे भौंरे रात्रि में उड़ नहीं पाते ।श्वाससे । श्वाससे उदर इस प्रकार ऊपर-नीचे होता है, मानो क्षीरसागर शोभा दे रहा हो । नाभिकमलतो नाभिकमल तो प्रत्यक्ष ही है; किंतु ब्रह्माजी ब्रह्मा जी कमलनाल से उतर जानेके जाने के कारण अब पश्चाताप करते हैं (कि मैं प्रभुकी नाभिसे प्रभु की नाभि से निकले कमलपर बैठा ही रहता तो आज भी उनके समीप रह पाता)।श्यामसुन्दरने हाथको मस्तकके । श्यामसुन्दर ने हाथ को मस्तक के नीचे रख लिया है, अतः अब मुखपर घिरी अलकें और अधिक शोभा दे रहीं हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि (यह ऐसी छटा है) मानो शेषनाग प्रभुके प्रभु के ऊपर अपने फणों से छाया किये ( छत्र लगाये) हों ।