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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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पहलू में ही डरकर प्यार सिमट आया है
अपनी दुनिया का आकार सिमट आया है

साथ नहीं हैं माँ, बाबूजी, भइया, भाभी
पत्नी-बच्चों तक परिवार सिमट आया है

टी.वी.-कम्प्यूटर ही हैं बच्चों का जीवन
इनमें ही उनका संसार सिमट आया है

शादी-ब्याह, खुशी-मातम किसको फ़ुरसत है
सम्बन्धों का कारोबार सिमट आया है

खीर-सिवैयाँ, रंग-गुलाल वही हैं लेकिन
अपने आँगन तक त्यौहार सिमट आया है


</poem>‌
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