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14:28, 27 फ़रवरी 2012 {{kkGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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<poem>
पहलू में ही डरकर प्यार सिमट आया है
अपनी दुनिया का आकार सिमट आया है
साथ नहीं हैं माँ, बाबूजी, भइया, भाभी
पत्नी-बच्चों तक परिवार सिमट आया है
टी.वी.-कम्प्यूटर ही हैं बच्चों का जीवन
इनमें ही उनका संसार सिमट आया है
शादी-ब्याह, खुशी-मातम किसको फ़ुरसत है
सम्बन्धों का कारोबार सिमट आया है
खीर-सिवैयाँ, रंग-गुलाल वही हैं लेकिन
अपने आँगन तक त्यौहार सिमट आया है
</poem>