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15:15, 27 फ़रवरी 2012 {{kkGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
|संग्रह=
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<poem>
लोग सिर्फ़ औरों को फ़लसफ़े पढ़ाते हैं
उनपे खुद नहीं चलते राह जो दिखाते हैं
बेटी और बेटे में फ़र्क अब नहीं कोई
ये भी छोड़ जाती हैं वो भी छोड़ जाते हैं
घर सभी का सपना है, देखिए परिन्दे भी
जोड़ –जोड़ तिनकों को घोंसले बनाते हैं
उसपे कितना चलते हैं ये तो उनकी मर्ज़ी है
लोग फिर भी बच्चों को रास्ता दिखाते हैं
नफ़रतों की आँधी भी कुछ ज़रूर सोचेगी
आइए मोहब्बत के दीप कुछ जलाते हैं
</poem>