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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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हक़ीक़त ज़िन्दगी की ठीक से जब जान जाओगे
मुसीबत के समय भी तुम हँसोगे-मुस्कराओगे

सुना है चाँद-तारे घर में भरना चाहते हो तुम
खुशी कुछ और ही शय है उसे इनमें न पाओगे

निराशा जब भी घेरे, उसमें मत डूबो निकल आओ
वहीँ उम्मीद की कोई किरन भी पा ही जाओगे

अँधेरों की हमें आदत है हम जी लेंगे लेकिन तुम
उजालों को बहुत दिन क़ैद में रख भी न पाओगे

सड़क चिकनी है, अच्छे पार्क हैं, चौराहे सुन्दर हैं
मगर वो खेत, वो जंगल कहाँ हैं कुछ बताओगे ?

</poem>‌
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