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15:48, 27 फ़रवरी 2012 {{kkGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
|संग्रह=
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<poem>
मदद करना बहुत दुश्वार था
ज़रूरतमंद भी खुद्दार था
जहाँ बिकने को थे बेताब सब
हमारे हर तरफ बाज़ार था
रियाया दे रही थी थैलियाँ
सियासत का अजब दरबार था
ज़रूरत पर पडोसी आ गए
ये उसका प्रेम था, व्यवहार था
मैं खुश था मुफ़लिसी में इसलिए
कि मेरे पक्ष में परिवार था
</poem>