कहने की मुश्किल
वाह जमाने बलि बलि जाऊं
शीशेेघर शीशेघर में बन्द मछलियां
पंछी सोने के पिंजड़े में,
दीमक चट रही दरवाजे
देहरी आंगन के झगडे में,
हर पत्थर खुुद खुद को शिव बोले किसको किसको अर्ध्य चढा़ऊं वाह जमाने बलि बलि जाऊं
एक स्याह बादल सिर ऊपर
झूम रहा आकाश उठाये
इस पर भी जिद है लोगों की
मैं गा राग मल्हार सुनाऊं
वाह जमाने बलि बलि जाऊं
कहने को मौसम खुशबू का
पीले पड़े पेड़ के पत्ते