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राम प्रसाद बिस्मिल / परिचय

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/* जज्वये-शहीद */
==जज्वये-शहीद==
( बिस्मिल के मशहूर उर्दू मुखम्मस ) का काव्यानुवाद
नोट: ( बिस्मिल का यह के मशहूर उर्दू मुखम्मस भी उन दिनों सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ करता था यह उनकी अद्भुत रचना है यह इतनी अधिक भावपूर्ण है कि लाहौर कान्स्पिरेसी केस के समय जब प्रेमदत्त नाम के एक कैदी ने अदालत में गाकर सुनायी थी तो श्रोता रो पडे थे[20]। जज अपना फैसला तत्काल बदलने को मजबूर हो गया और उसने प्रेमदत्त की सजा उसी समय कम कर दी थी। अदालत में घटित इस घटना जज्वये-शहीद का उदाहरण भी इतिहास में दर्ज हो गया। काव्यानुवाद)
'''मुखम्मस में प्रत्येक बन्द या चरण ५-५ पंक्ति का होता है पहले चरण में एक-सी लयबद्धता होती है और बाद के सभी बन्द अन्तिम पंक्ति में उसी लय में आबद्ध होते रहते हैं।'''
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,हमको नोट: बिस्मिल का यह उर्दू मुखम्मस भी पाला उन दिनों सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ करता था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को ! अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को ! अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता यह उनकी अद्भुत रचना है,मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता यह इतनी अधिक भावपूर्ण है ,कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,कौम अपनी पे तो रह-रह कि लाहौर कान्स्पिरेसी केस के मलाल आता है ,मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को ! नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट समय जब प्रेमदत्त नाम के,और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को ! एक परवाने का बहता है लहू नस-नस कैदी ने अदालत में,अब गाकर सुनायी थी तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ श्रोता रो पडे थे[20]। जज अपना फैसला तत्काल बदलने को मजबूर हो गया और उसने प्रेमदत्त की कसमें ,सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस सजा उसी समय कम कर दी थी। अदालत में ,बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !घटित इस घटना का उदाहरण भी इतिहास में दर्ज हो गया।
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
 
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
 
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
 
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
 
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
 
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
 
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
 
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
 
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
 
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?
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