गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
दो रोटी की खातिर / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
10 bytes added
,
15:50, 5 मार्च 2012
माँगे आग नहीं दी हमने
कभी
पडोसी
पड़ोंसी
को,पूड़ी-पुआ खिलाया
बैठा
घर में
बैठा
दोषी को ।
बदले रोज मुखौटे झूठी
रोज़ रचे घर से बाहर तक
नये नये
तिकडम
तिकड़म
।
साथी से ले कर्ज़ नहीं फिर
Sheelendra
66
edits