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नयी नये चलन के इस कैफे कैफ़े मेंशिथिल हुयीं हुईं सब धाराएँपरम्पराएं
पियें-पिलायें, पिलाएंमौज उड़ायें
डाल हाथ में हाथ चले
देह उघारे, करें इशारेजुड़ें-जुड़ायें नयन-नैन मिले औ' मिले गले
मदहोशी में इतना बहकेभूल गए हैं सब सीमाएँ
झरी माथ से मादक बूँदें
सांसों में कुछ ताप चढ़ाहौले-हौले अन्दरभीतर-बाहरकामुकता का चाप चढ़ा
इक दूजे एक दूसरे में इतना जो डूबेटूटीं टूट गईं सब सब मर्यादाएँ
भैया मेरे, साधो मन कोअजब-गजब-सी हैयह धरती
थोड़ा पानी रखो बचाकर
करते क्यों ऑंखें परतीं?
जब-जब मरा आँख का पानीआयीं आईं हैं तब-तब विपदाएँ
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