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<Poem>
छार-छार हो पर्वत दुख का पर्वत
ऐसा बने सुयोग
गलाकाट इस कंपटीशन कंप्टीशन मेंकठिन हुआ जीवित रह पानामुश्किल सर्वप्रथम आ जाना शिखर गए पा बचे रहे यदि जीवित किसी तरह तो भीमुश्किल है इसमें उस पर टिक पाना
सफल हुए हैं जो इस युग मेंजो
ऊँचा उनका योग
बड़ी-बड़ी ‘गाला’ महफ़िल मेंहों कितनी हों भोगों की बातें
और कहीं टपरे के नीचे
सिकुड़ी हैं मन मारे सिकुड़ी आँतें
कोई हाथ चिरौरी करतासाधता चाकू कोई करे नियोगसाधे जोग
भइया मेरे, पता चले तोमेराबतलइयो वह बता रहा था कोचिंग भी है कला अनूठीआस-पास अपनी नाउम्मीदी की धरती परमिल जाए उगती हैकरिअर की बूटी
दुआ तुम्हारे लिए करेंगे सफल बनाने का प्रतिदिन हम सब लोगअसफल को सर्वोत्तम उद्योग
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