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<Poem>
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
खनन माफ़िया
मिलकर लूटेंमिल कर लूटेजल औ' जंगलबाझ, कबूतर नित-नित टूटेंपर ज्यों टूटे
मैट मेट रहेकुदरत का लेखा!किससे अबक्या कहे सुलेखा!
बोली 'छविया'भोली
धरा-दबोचा
नेता-मालिकएक व्यवस्था ने सबने मिल नोंचा
समाचारपेपर में दुनिया ने देखा!किससे अबक्या कहे सुलेखा!
दुस्साहस-
क्रशरों का बढ़ता
चट्टानों से
चूना झड़ता
टूट रहीमिटी हीर की है जीवन रेखा!किससे अबक्या कहे सुलेखा!
</poem>
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