Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
सत्ता पर काबिज
होने को
कट-मर जाते दल
आज सियासत-
सौदेबाजी
जनता में हलचल
हवा चुनावी,
आश्वासन के
लड्डू दिखलाए
खलनायक भी नायक बनकर
संसद पर छाए
 
कैसे झूठ खुले-
अँजुरी में
भरते गंगा-जल
 
लाद दिये
पिछले वादों पर
और नये कुछ वादे
चिंताओं का बोझ जिन्दगी
कोइ कब तक लादे
 
जिये-मरे
ये काम न आये,
बेमतलब, बेहल
 
वही चुनावी
मुद्दा लेकर
वे फिर घर आए
मन को छूते बदलावों के
सपने दिखलाए
 
हैं प्रपंच, ये पंच
स्वयं के
कैसे-कैसे छल
</poem>
273
edits