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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> बच्च...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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<poem>

बच्चे सीख रहे
टी.वी. से
अच्छे होते हैं ये दाग़!

टॉफी, बिस्कुट, पर्क, बबलगम
खिला-खिला कर मारी भूख
माँ भी समझ नहीं पाती है
कहाँ हो रही भारी चूक

माँ का नेह
मनाए हठ को
लिए कौर में रोटी-साग
अच्छे होते हैं ये दाग़!

बच्चा पहुँच गया कॉलेज में
नेता बना जमाई धाक
ट्यूशन, बाइक, मोबाइल के
नाम पढाई पूरी ख़ाक

झूठ बोलकर
ऐंठ डैड से
खुलता बोतल का है काग
अच्छे होते हैं ये दाग़!

हुआ फेल जब, पैसा देकर
डिग्री पाई बी.टेक. पास
दौड़ लगाई रजधानी तक
बंध पाई ना फिर भी आस

बीच रेस में बैठा घोड़ा
मुंह से निकल रहा है झाग
अच्छे होते हैं ये दाग़!
</poem>
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